अलिफ लैला की प्रेम कहानी-68
अबुल हसन ने
स्वप्न से जागने
के लिए दाँत
से अपनी उँगली
काटी और कहने
लगा, अजीब मुसीबत
है। मैं वही
सपना फिर देख
रहा हूँ जो
मैं ने पिछली
बार देखा था
और जिसके कारण
मुझ पर हवालात
में इतनी मार
पड़ी। कल मैं
ने जिसे मेहमान
बनाया था उस
ने फिर बदमाशी
की। उसी के
कारण पिछली बार
मैं ने वह
सपना देखा जिस
से महीना भर
मेरी दुर्दशा होती
रही। इस बार
मैं ने ताकीद
की थी कि
दरवाजा बंद कर
जाना किंतु वह
दुष्ट फिर दरवाजा
खोल कर चला
गया जिस से
मुझे शै
तान ने बहका
दिया मुझे फिर
ऐसा सपना दिखाई
दे रहा है
जिस से मैं
स्वयं को खलीफा
समझूँ और दोबारा
अपमान सहन करूँ।
हे भगवान, मुझे
शैतान के जाल
से बचा।
यह कह कर
उस ने आँखें
बंद कर लीं
और बहुत देर
तक लेटा रहा
ताकि सपना समाप्त
हो जाए। किंतु
जब आँखें खोलीं
तो सभी वस्तुएँ
यथावत देखीं। उस
ने फिर आँखें
बंद कर लीं
और भगवान से
प्रार्थना करने लगा
कि मुझे शैतान
की माया से
बचा। वह शायद
इसी तरह पड़ा
रहता किंतु खलीफा
के इशारे से
उसे दास-दासियों
ने चैन न
लेने दिया। आरामे-जाँ नाम
की एक सुंदर
दासी जिसे पहले
भी अबुल हसन
ने बहुत पसंद
किया था, उस
के निकट आ
कर बैठ गई
और बोली, ऐ
सारी दुनिया के
मालिक, दासी का
अपराध क्षमा हो।
मेरी प्रार्थना है
कि आप निद्रा
त्याग करें। यह
समय सोने के
लिए नहीं है।
सूरज निकल आया
है।
अबुल हसन ने
डाँट कर कहा,
भाग जा शैतान
यहाँ से। दासी
का रूप धर
कर आया है
और मुझे खलीफा
कह कर बहका
रहा है? आरामे-जाँ बोली,
यह क्या फरमा
रहे हैं सरकार?
आप खलीफा नहीं
तो कौन हैं?
आप ही सारे
संसार के मुसलमानों
एवं अन्य धर्मावलंबियों
के स्वामी हैं
और मैं आप
की एक तुच्छ
दासी हूँ। लगता
है आप ने
रात कोई दुःस्वप्न
देखा है। आप
आँखें खोलें, आप
का भ्रम दूर
हो जाएगा। रात
को आप बहुत
देर तक सोए
और हमने आप
के शयन में
विघ्न डालना उचित
न समझा, इसी
बीच आप ने
सपना देखा होगा।